प्रधानमंत्री जी आपको जवाब देना होगा।।

             जुल्मत को जिया सरसर को सबा बंदे को खुदा क्या लिखना
             पत्थर को गुहर दीवार को दर कर्गस को हुमा क्या लिखना
             ए मेरे वतन के फनकारों जुल्म्त पे न अपना फन वारो
             ये महल सराहों के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो ॥

उपर की ये पंक्तियां पकिस्तान के बगावती शायर
'हबीब जालिब' ने लिखी हैं॥
अब कुछ खोखले राष्ट्रवादी मुझको पाकिस्तान चले जाने का फरमान दे देंगे लेकिन खैर इससे कोइ फर्क़ नहीं पढ़ता है॥ 
इन पंक्तियों को दोहराते रहना चाहिये हर उस वक़्त पर जब सरकार दमनकारी नीतियों को अपनाने लगे और लोकतंत्र के उपर उठने का दुस्साहस करे॥

क्या प्रधानमंत्री खुद को लोकतंत्र से ऊपर समझते हैं ?

अभी हाल मैं एक खबर आयी थी जिसमें प्रधानमंत्री को उनके महाराष्ट्र में दिये एक बयान के लिये चुनाव आयोग ने क्लीन चिट दे दी  जबकि इसी चुनाव आयोग के दो अधिकारियों ने इसका विरोध किया और चुनाव आयोग के संविधान का हवाला देते हुए ये कहा कि प्रधानमंत्री सैनिकों के नाम पर वोट मांगकर इसका उल्लंघन कर रहे हैं लेकिन इसके बावजूद भी चुनाव आयोग ने क्लीन चिट दे दी ये कहते हुए की उन्होंने अपनी पार्टी के नाम का इस्तेमाल नहीं किया इसलये उनपर उल्लंघन का आरोप नहीं लगाया जा सकता।।

ये तो हुआ पहला मामला अब दूसरा मामला सुन लीजिए हाल ही में महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सुरक्षाबल के 15 C-60 कमांडो नक्सलियों द्वारा किये एक IED धमाके में शहीद हो गए।।
सबसे पहले तो उन शहीद जवानों को अश्रुपूरित श्रद्धाजंलि जो सरकार की नाकाम नीतियों की बलि चढ गए।।
और अब बात प्रधानमंत्री की जो अपनी एक चुनावी रैली में उस वक़्त ये कहते हैं जब पुलवामा जैसी वीभत्स हमले को बहुत दिन नहीं बीते थे कि उनके पांच साल के कार्यकाल में कोई बहुत बड़े हमले नहीं हुए।।
प्रधानमंत्री से ये पूंछना चाहिए क्या 40 जवानों  की शहादत उनके लिए कोई बड़ा हमला नहीं है? क्या उरी में सेना पर हुआ आत्मघाती हमला उनके लिए कोई बड़ा हमला नहीं है??
अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री जी आपकी आलोचना तब तक होनी चाहिए जब तक कि आपको अपने इन कोरी लफ़्फ़ाजी और बयानबाजी पर शर्मिंदगी महसूस न होने लगे।।
आप महाराष्ट्र में शहीदों के नाम पर वोट मांगते हैं , आप श्रीलंका में हुए आतंकी हमले में मारे गए लोगों के नाम पर वोट मांगते हैं ।।
क्या ये सब एक देश के प्रधानमंत्री को शोभा देता है?? क्या आपको  लोकतंत्र का जरा भी नहीं ख्याल ?

                                                           (photo source: thestorypedia.com)

स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए प्रखरता से प्रशंशा हो और प्रमुखता से आलोचना


प्रधानमंत्री जी मैं आपके संघर्ष का बहुत बड़ा प्रशंसक  हूं।। जिस तरीके से आपने संघर्ष किया, जिस रास्ते पर चलकर आप देश की शीर्ष सत्ता पर काबिज़ हुए वो क़ाबिल-ए-तारीफ है।।
गरीबों ने आपको अपना मसीहा मान लिया मध्यमवर्गीय लोगों ने आपको अपना नेता मान लिया और आपने एक परिवार के सत्तारूपी अहंकार और उस परिवारवादी सोच का दमन कर दिया जो पिछले 60 वर्षों से चली आ रही थी।।

चीन द्वारा अजहर मसूद को ग्लोबल आतंकी घोषित होने पर आपकी सरकार व कांग्रेस की पूर्व सरकार को बधाई व धन्यवाद।।
आपको धन्यवाद इसलिए क्योंकि ये आपके कार्यकाल में सम्पन्न हुआ और उनको बधाई इसलिए क्योंकि इस प्रस्ताव की नींव उस सरकार द्वारा ही रखी गयी।।
इन सब चीजों के लिए आपकी प्रखरता से तारीफ होनी चाहिए।।

लेकिन इन सबके बावजूद में आपका उतना ही बड़ा आलोचक भी हूं जितना कि प्रशंशक क्योंकि लोकतंत्र में सत्ता के सही कामों पर  जितनी प्रखरता से प्रशंसा हो उतनी ही प्रमुखता से गलत नीतिओं पर उसका विरोध होना चाहिए || आपने भले ही संघर्ष किया हो लेकिन आप उस संघर्ष का या तो मोल जानते नहीं हैं या जानते हुए भी समझना नहीं चाहते हैं या फिर किसी संस्था का काम निष्पक्ष नहीं हैं || 

क्या आपको इस बात का इल्म है कि आपने सरकारी संस्थाओं  की क्या स्थिति बना दी है??
आज चुनाव आयोग से लेकर पुलिसिया प्रशासन तक किसी संस्था का काम निष्पक्षता से नहीं हो रहा है।।

चुनावों के दौर में आपने राष्ट्र के मुद्दे आतंकवाद की ओर मोड़ दिए।। 
राष्ट्र के मुद्दे स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा व्यवस्था, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवेलपमेंट, रोजगार, कानून व्यवस्था, इन सब पर आधारित होने चाहिए थे न कि हिन्दू-मुसलमान, पाकिस्तान, पर आधारित होने चाहिए थे।।
 प्रधानमंत्री महोदय अगर आपको यही सब करना है तो आप इस प्रधानमंत्री पद को त्याग दीजिये क्योंकि ये पद देश का भविष्य सुनिश्चित करने के लिए , देश की जनता को गुमराह  करने और बरगलाने के लिए नहीं ।।

कभी आपकी सरकार ने इस बात पर ध्यान दिया कि देश मे सरकारी अस्पतालों की क्स्ति क्या है ? जहां एक मरीज सिस्टम के नियमों का पालन करते करते ही दम तोड़ देता है।।
क्या आपने कभी ये सोचने का प्रयास किया कि देश मे सरकारी स्कूलों की व्यवस्था इतनी बदतर क्यों हैं??

और इन सबके एवज में जब आपसे सवाल पूंछे जाते हैं तो आप पिछले 65 सालों का हवाला देते हैं , अगर आप भी पिछली सरकारों की तरह उनके रवैये को अपनायेगें और  65 सालों की दुहाई देंगें या देश के मूल मुद्दों पर बहाने बनायेगें तो आपको ये कुर्सी छोड़ देनी चाहिए जिसपर आप अभी विराजमान हैं ।।

उन उम्मीदों का क्या जो आपसे 2014 में की गयीं थीं ?

                                                       कहां हैं 200 स्मार्ट सिटी ?

                                             
2014 के अपने चुनावी घोषणा पत्र और अपने अंतर्मन को गौर  से देखिये प्रधानमंत्री जी इसमे आपको 200 स्मार्ट सिटीज का किया हुआ वादा और इसके जैसे कई जुमले  धराशायी होते हुए नजर आएंगे || || यही स्थति 2 करोड़ नौकरियों के वादे की है जिसमे आपने नौजवानों को 2 करोड़ नौकरी देने का वादा किया था और फिर वही नौजवान दिल्ली में एसएससी घोटाले पर इन्साफ मांगने की लिए लाठियां खा रहे होते हैं !!

                                               क्या यही थे आपके वादे ? क्या यही हैं आपकी नीतियां ?

                                               (IMAGE SOURCE: DU BEAT)

प्रधानमंत्री जी उन सब बातों पर आपसे चीख चीख कर सवाल पूंछे जाएंगे जिनका आपने वादा किया था और आपको जबाव देना पड़ेगा।। यही लोकतंत्र की नियति है और यही लोकतंत्र का गौरव  है।।
आपको जवाब देना होगा क्योंकि इस देश का इतिहास रहा है जब जब सरकारों ने जनता के सवालों की अनदेखी की है तब तब जनता ने क्रांति का रुख अख्तियार किया है।।
                                               (इमेज क्रेडिट : business insider)

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