प्रधानमंत्री जी आपको जवाब देना होगा।।
जुल्मत को जिया सरसर को सबा बंदे को खुदा क्या लिखना पत्थर को गुहर दीवार को दर कर्गस को हुमा क्या लिखना ए मेरे वतन के फनकारों जुल्म्त पे न अपना फन वारो ये महल सराहों के बासी क़ातिल हैं सभी अपने यारो ॥ उपर की ये पंक्तियां पकिस्तान के बगावती शायर ' हबीब जालिब ' ने लिखी हैं॥ अब कुछ खोखले राष्ट्रवादी मुझको पाकिस्तान चले जाने का फरमान दे देंगे लेकिन खैर इससे कोइ फर्क़ नहीं पढ़ता है॥ इन पंक्तियों को दोहराते रहना चाहिये हर उस वक़्त पर जब सरकार दमनकारी नीतियों को अपनाने लगे और लोकतंत्र के उपर उठने का दुस्साहस करे॥ क्या प्रधानमंत्री खुद को लोकतंत्र से ऊपर समझते हैं ? अभी हाल मैं एक खबर आयी थी जिसमें प्रधानमंत्री को उनके महाराष्ट्र में दिये एक बयान के लिये चुनाव आयोग ने क्लीन चिट दे दी जबकि इसी चुनाव आयोग के दो अधिकारियों ने इसका विरोध किया और चुनाव आयोग के संविधान का हवाला देते हुए ये कहा कि प्रधानमंत्री सैनिकों के नाम पर वोट मांगकर इसका उल्लंघन कर रहे हैं लेकिन इस