राजनीतिक व्यक्तिओं को ये समझना चाहिए कि देश की राजनीति किसी की बपौती नहीं है

                 इस देश में युवाओं की भूमिका क्या है ?

भारत एक प्रगतिशील बहु तादायद आबादी वाला राष्ट्र है || 2017 में  देश की कुल आबादी 133 करोड़ थी , अब तक थोड़ा और इजाफा हुआ होगा ||
इसी बीच एक आंकड़ा ये भी है की दुनिया में भारत एकमात्र ऐसा देश हैं जहां युवाओं की आबादी सबसे ज्यादा है , तकरीबन 600 मिलियन युवा ऐसे हैं जो 25 साल की उम्र के नीचे  हैं || आंकड़ों के हिसाब से देखें तो देश की 50 प्रतिशत से ऊपर की आबादी युवाओं की है जो कि राष्ट्र के लिए बहुत ही अच्छी बात है  || 
लेकिन इन सबके बावजूद भी भारत में युवाओं की वो बेहतर स्थिति नहीं है जो हकीकत में होनी चाहिए || सबसे ज्यादा दयनीय स्थिति युवाओं की राजनीति के क्षेत्र में है , 50 प्रतिशत युवा आबादी होने के बावजूद भी राजनीति में युवाओं की संख्या सिर्फ 6 प्रतिशत है जो कि बहुत ही निराशाजनक है ||


देश का भविष्य कहा जाने वाला युवा ही उस भविष्य से गायब है 

किसी भी राष्ट्र के भविष्य का निर्माण उस देश के युवा , उस देश की जनता और उस देश की सरकार करती है || भारत में भी यही प्रचलन है लेकिन हैरत की बात ये है कि देश की सरकारें शायद युवाओं के प्रति इतनी जागरूक नहीं हैं ||युवा को चाहिए अच्छी शिक्षा , बड़ी यूनिवर्सिटी , रोजगार के नये अवसर  न कि राजनीतिक पार्टिओं द्वारा चलाये जा रहे धार्मिक और उन्मादी अजेंडा के तहत गुमराह होना || शीर्ष सत्ता में वर्षों से बैठे लोग नहीं चाहते हैं कि युवाओं का दखल राजनीति में भी हो इसलिए उन्हें ऐसी चीजों में उलझा देने का प्रयास किया जाता है  जिसमें उलझकर वो अपने भविष्य को लेकर ज्यादा विचार ही न कर पाएं || 

आज स्थिति तो ये है कि देश का युवा शिक्षा तो भारत में बने विश्वविद्यालयों से ग्रहण करता है लेकिन नौकरी के लिए वो विदेश में जाना बेहतर समझता है , इसका मुख्या कारण है भारत में रोजगार के पर्याप्त अवसर न होना || 
भारत के पास उपयोग करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं , काम करने के लिए ऊर्जावान युवाओं की संख्या है लेकिन फिर भी युवा अप्रत्यक्ष रूप से नेपथ्य में है ||
 सरकार द्वारा बड़ी बड़ी योजनाएं बनायीं जाती हैं , जहां एक ओर पढ़ लिख कर युवा अपने भविष्य को सुनिश्चित करने का सपना देखते हैं वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री महोदय इन पीएचडी होल्डर युवाओं को पकौडे तलने की सलाह देते हैं || 
इन्हीं सिस्टम की खामियों और ऐसी बयान बाजियों का नतीजा है की देश का युवा इतना पढ़ लिख कर भी बेरोजगार है || इसके बड़े उदाहरण के तौर पर हम हाल ही में एसएससी घोटाले को देख सकते हैं की कैसे 190000 छात्रों का भविष्य सिस्टम की बलि चढ़ गया || 


क्या युवाओं की भूमिका राजनीति में सीमित है ?

आज भले ही राजनीति में युवा बढ़ चढ़कर हिस्सा न ले रहे हों लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि राजनीति में दिलचस्पी में नहीं रखता या वह इस आधुनिक राजनीति का हिस्सा न हो || 
युवा तो राजनीति का हिस्सा तब से है जब से आज़ादी की लड़ाई लड़ी गयी || इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर हम शहीद -ए -आजम भगत  सिंह को सफल क्रन्तिकारी के साथ साथ एक कुशल राजनीतिज्ञ भी कहें || 
उनके पत्रों और आत्मकथाओं से ये सुनिश्चित होता है कि उनकी कई सारी ऐसी नीतियां थीं जो राष्ट्र को एक समाजवादी व्यवस्था की ओर ले जातीं और राष्ट्र को एक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था प्रदान करतीं || 

लेकिन आज की स्थिति देखकर ये लगता है कि जिस प्रकार सत्ता में पुराने लोग कई कई वर्षों से अपना आसन लगाए बैठे हैं और जिस प्रकार से राजनीति जनबल से स्थानांतरित होकर धनबल में तब्दील हो गयी है ऐसे माहौल में युवाओं को राजनीति में आने की कठोर आवश्यकता है और उसके लिए देश के युवाओं को संगठित होना पड़ेगा व् क्रांति का रास्ता अपनाना होगा क्युंकि वर्षों से राजनीति के रस को चखते आ रहे ये नेता यूँ इतनी आसानी से सत्ता को अपने हाँथ से जाने न देंगे ||

युवाओं को अपने ऊँचे मुस्तक़बिल के लिए लड़ना होगा , जरूरी नहीं है कि हर बार क्रांति अंग्रेज़ों के खिलाफ ही हो , जब शीर्ष पर बैठी सरकारें और चंद सीमित सोच की राजनीतिक पार्टियाँ देश के सरकारी तंत्र और इसकी मशीनरी  पर अपना अधिपत्य स्थापित करने की कोशिश करें तो फिर क्रांति अपनों के विरुद्ध ही करनी पड़ती है और ऐसे वक़्त पर जरूरी है की देश का जन समुदाय एक साथ उठ खड़ा हो और इंक़लाब ज़िंदाबाद के नारों के साथ ऐसी शक्तियों को जड़ से फेंके || 

                                                      

                                     इंक़लाब ज़िंदाबाद 

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